‘डिजिटल अरेस्ट’ के नाम पर देश भर में हो रही ठगी की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान ले लिया है. कोर्ट ने भोले-भाले लोगों के साथ हो रही ठगी को चिंताजनक कहा है. इसे रोकने के उपायों पर केंद्र सरकार और सीबीआई निदेशक से जवाब दाखिल करने को कहा है. साथ ही, अटॉर्नी जनरल से भी सुनवाई में सहायता करने के लिए कहा है.
जिस मामले में कोर्ट ने संज्ञान लिया है, वह अंबाला के एक बुजुर्ग दंपति से जुड़ा है. सितंबर में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का फर्जी आदेश दिखा कर 1 करोड रुपए से अधिक की रकम ठग ली गई थी. जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच ने हरियाणा पुलिस से भी स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, ‘सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के नाम और मोहर का आपराधिक दुरुपयोग गहरी चिंता का विषय है. जजों के फर्जी हस्ताक्षर के साथ हो रहा ऐसा फर्जीवाड़ा न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास की नींव को हिलाता है. यह कानून के शासन पर भी सीधा प्रहार है. इसे साधारण धोखाधड़ी या साइबर अपराध नहीं माना जा सकता.’
जजों ने कहा है कि दुर्भाग्य से यह इकलौता मामला नहीं है. पूरे देश में ऐसा हो रहा है. इन घटनाओं को रोकने के लिए केंद्र और राज्यों की पुलिस एजेंसियों के बीच समन्वित प्रयास की जरूरत है. ज्यादातर मामलों में वरिष्ठ नागरिक ठगी का शिकार हो रहे हैं.
21 सितंबर को हरियाणा के अंबाला की एक बुजुर्ग महिला ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया भूषण रामकृष्ण गवई को शिकायत भेजी थी. 73 साल की महिला ने बताया था कि ठगों ने खुद को सीबीआई, आईबी और कोर्ट के अधिकारियों के तौर पर दिखाते हुए उनसे और उनके पति से फोन और वीडियो कॉल के जरिए संपर्क किया. उन्होंने कई विभागीय आदेशों के अलावा उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना के हस्ताक्षर वाला फर्जी आदेश भी व्हाट्सएप पर भेजा.
नकली आदेशों से डरा कर ठगों ने उन्हें 1 से 16 सितंबर के बीच उन्हें डिजिटल अरेस्ट पर रखा. इस दौरान कई बैंकिंग ट्रांजेक्शन के जरिए उनसे लगभग 1.5 करोड़ रुपए ट्रांसफर करवाए गए. यह रकम उनके जीवन भर की जमा-पूंजी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामले चिंता में डालने वाले हैं.