दिल्ली हाई कोर्ट ने पूर्व नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो अधिकारी समीर वानखेड़े को प्रमोशन देने के आदेश के सेंट्रल ट्रिब्यूनल अथॉरिटी के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका में तथ्यों को छिपाने पर केंद्र सरकार पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. जस्टिस नवीन चावला की बेंच ने केंद्र सरकार की याचिका खारिज करते हुए ये जुर्माना लगाया है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि एक राज्य के रूप में केंद्र सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह कोर्ट के सामने सभी तथ्य ईमानदारी से पेश करें, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि यह संदेश दिया जाना जरूरी है कि सच को छिपाने का परिणाम भुगतना होगा और सरकार की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया.
क्या है पूरा मामला
पिछले साल विभागीय पदोन्नति समिति ने समीर वानखेड़े का प्रमोशन मामला सील कवर में रख दिया था, यह कहते हुए कि उनके खिलाफ CBI और ED जांच लंबित हैं और विभागीय कार्यवाही भी चल रही है, लेकिन दिसंबर 2024 में सेंट्रल ट्रिब्यूनल अथॉरिटी ने आदेश दिया कि यह कवर खोला जाए और अगर यूपीएससी उनके नाम की अनुशंसा करे तो उन्हें जनवरी 2021 से जॉइंट कमिश्नर पद पर पदोन्नत किया जाए.
केंद्र सरकार की दलील
केंद्र सरकार ने CAT के आदेश को चुनौती दी थी, जिसे हाई कोर्ट ने अगस्त 2025 में खारिज कर दिया. इसके बाद केंद्र ने पुनर्विचार याचिका डाली, यह कहते हुए कि इसी बीच विभागीय कार्यवाही शुरू की गई थी, इसलिए पिछले आदेश की समीक्षा होनी चाहिए. मगर कोर्ट ने पाया कि CAT ने अगस्त में ही उस विभागीय कार्रवाई पर रोक लगा दी थी और यह तथ्य सरकार ने छिपा लिया. कोर्ट ने इसे गंभीर चूक माना और सरकार पर जुर्माना लगाया.
समीर वानखेड़े के वकील की दलील
दिल्ली हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान समीर के वकील ने कहा कि केंद्र सरकार बार-बार झूठे बहानों से प्रमोशन रोकने की कोशिश कर रही है, जबकि वानखेड़े के खिलाफ न कोई चार्जशीट है और न ही वो निलंबित हैं. इन्ही आधार को देखते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार की अर्जी खारिज कर दी.
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