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सीट शेयरिंग विवाद कहीं महागठबंधन को न ले डूबे! NDA को घेरने के चक्कर में कहीं खुद तो नहीं फंस रहे तेजस्वी, 5 प्वाइंट में समझें

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बिहार विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की समयसीमा खत्म होने के साथ ही बड़ी-बड़ी राजनीतिक हस्तियों का अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए प्रचार करना भी शुरू हो गया है. एनडीए को सत्ता से बेदखल करने की उम्मीद लगाए बैठे महागठबंध के सहयोगियों में सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन पाई. महागठबंधन की ओर से सीट शेयरिंग फॉर्मूले की औपचारिक घोषणा तो नहीं की गई, लेकिन नॉमिनेशन प्रक्रिया समाप्त होते ही चीजें साफ हो गई कि कौन कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा.

NDA से पिछड़ने लगा महागठबंधन

1. बिहार की कुल 243 विधानसभा सीटों पर महागठबंधन की तरफ से 254 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं. 11 सीटों पर महागठबंधन की तरफ से दो-दो उम्मीदवार ताल ठोक रहे हैं. वैशाली, लालगंज, कहलगांव, राजापाकर और रोसड़ा ऐसी विधानसभा सीट हैं, जहां कांग्रेस और आरजेडी आमने-सामने होंगे. वहीं बछवाड़ा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार का मुकाबला सीपीआई प्रत्याशी से होगा। ऐसे में महागठबंधन के कार्यकर्ताओं के लिए असमंजस की स्थिति बन चुकी है, जिसका फायदा NDA को हो सकता है.

2. राहुल गांधी वोट अधिकार यात्रा के दौरान महागठबंधन के नेताओं में जो उत्साह देखा जा रहा था अब वो कम हो गई है. हालत ये हो गई कि सीट बंटवारे को लेकर आरजेडी और कांग्रेस के नेताओं में बातचीत भी बंद है. इसका असर ये हुआ है कि अभी तक ये भी तय नहीं हो पाया कि महागठबंधन के कौन से बड़े नेता किसके प्रचार में जाएंगे, जबकि एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई नेताओं की रैली शुरू हो गई है.

3. महागठबंधन की ओर से आरजेडी सबसे ज्यादा  143 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं तो कांग्रेस के 61 प्रत्याशी मैदान में हैं. सीपीआई माले 20 सीटों पर, सीपीआई 9 सीट, सीपीएम 4 सीट, वीआईपी 15 सीट और आईपी गुप्ता की पार्टी 3 सीट पर चुनाव लड़ रही है. 1 सितंबर के बाद से राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने एक साथ प्रचार नहीं किया है. मल्लिकार्जुन खरगे ने शुरुआत में रैली की थी, लेकिन अब वे भी दूरी बना चुके हैं. 

4. इस बार के बिहार चुनाव में कांग्रेस का पूरा फोकस महिला वोटर पर है, जिसका जिम्मा खुद  सांसद प्रियंका गांधी ने उठाया था. सीट बंटवारे को लेकर ऐसा पेंच फंसा कि 24 सितंबर को पश्चिमी चंपारण में रैली करने के बाद से वह चुनावी प्रचार में नहीं दिखी हैं. इतना ही नहीं बिहार के हर प्रमंडल में एक रैली करने का कार्यक्रम भी बनाया गया था, जिसमें महागठबंधन के नेता को शामिल होना था, लेकिन अब वह रैली भी जमीन पर नहीं दिख रही है.

5. बिहार चुनाव में महागठबंधन की ओर से दूसरे राज्य के बड़े-बड़े नेताओं से प्रचार कराने की योजना था, लेकिन अब वह भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. ऐसे में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और सपा चीफ अखिलेश यादव के लिए कशमकश की स्थिति बन गई है. सीट बंटवारे और चुनाव प्रचार अभियान को लेकर महागठबंधन मोमेंटम की लड़ाई में एनडीए से पिछड़ता नजर आ रहा है.

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