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सुप्रीम कोर्ट ने गरीब विचाराधीन कैदियों की जमानत राशि के भुगतान पर जारी की संशोधित SOP, अधिकारियों को दिए निर्देश

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सुप्रीम कोर्ट ने रविवार (19 अक्टूबर, 2025) को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के माध्यम से राज्य सरकारों की ओर से गरीब विचाराधीन कैदियों की जमानत राशि के भुगतान के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) में संशोधन किया है. न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश व न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी और न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा की ओर से दिए गए सुझाव को स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया.

शीर्ष न्यायालय ने पिछले साल 13 फरवरी को जारी अपने पूर्व एसओपी में कुछ संशोधन किए और आदेश दिया कि जिलाधिकारी या जिलाधिकारी की ओर से नामित व्यक्ति, प्राधिकरण के सचिव, पुलिस अधीक्षक, संबंधित जेल के अधीक्षक/उपाधीक्षक और संबंधित जेल के प्रभारी न्यायाधीश की एक अधिकार प्राप्त समिति गठित की जाएगी. प्राधिकरण सचिव अधिकार प्राप्त समिति की बैठकों के संयोजक होंगे.

अदालत ने कहा कि अगर विचाराधीन कैदी को जमानत दिए जाने के आदेश के सात दिनों के भीतर जेल से रिहा नहीं किया जाता, तो जेल अधिकारी प्राधिकरण के सचिव को सूचित करें. सूचना प्राप्त होने पर प्राधिकरण के सचिव यह सुनिश्चित करेंगे कि विचाराधीन कैदी के बचत खाते में धनराशि है या नहीं और अगर राशि नहीं है तो पांच दिनों के भीतर इसके लिए प्राधिकरण को अनुरोध भेजा जाएगा.

रिपोर्ट मिलने के बाद पांच दिन में जारी करें जमानत राशि- कोर्ट

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘इंटरऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (ICJS) में एकीकरण लंबित रहने तक जिला स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति (DLEC) रिपोर्ट प्राप्त होने की तारीख से पांच दिनों के भीतर प्राधिकरण की सिफारिश पर जमानत के लिए धनराशि जारी करने का निर्देश देगी.’ कोर्ट ने आदेश में कहा कि समिति, प्राधिकरण की ओर से सुझाए गए मामलों पर विचार करने के लिए प्रत्येक माह के पहले और तीसरे सोमवार (अगर ऐसे दिनों में अवकाश हो, तो अगले कार्यदिवसों पर) को बैठक करेगी.

‘गरीब कैदियों को सहायता योजना’ के तहत मिल सकती है मदद

पीठ ने कहा कि अगर अधिकार प्राप्त समिति की ओर से यह सिफारिश की जाती है कि कोई विचाराधीन कैदी ‘गरीब कैदियों को सहायता योजना’ के तहत सहायता पाने का पात्र है, तो उस स्थिति में उस कैदी को अधिकतम 50,000 तक की वित्तीय सहायता दी जा सकती है. यह राशि अदालत के पास सावधि जमा के रूप में या किसी अन्य निर्धारित माध्यम से उपलब्ध कराई जानी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया समिति के निर्णय के पांच दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए.

कोर्ट ने 8 अक्टूबर को निर्देश दिया, ‘इंटरऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में एकीकरण लंबित रहने तक इस निर्णय की सूचना प्राधिकरण और जेल अधिकारियों को ईमेल की ओर से एक साथ दी जाएगी. अगर पांच दिनों के भीतर यह धनराशि अदालत में जमा नहीं की जाती और विचाराधीन कैदी को रिहा नहीं किया जाता है तो जेल अधिकारी छठे दिन प्राधिकरण को सूचित करें. अगर कैदी को बरी/दोषी ठहराया जाता है, तो अधीनस्थ न्यायालय उचित आदेश दे सकते हैं ताकि धनराशि सरकार के खाते में वापस आ जाए क्योंकि यह केवल जमानत हासिल करने के उद्देश्य से है.’

जरूरत पड़ने पर समिति एक लाख तक का कर सकती है भुगतान

न्यायालय ने कहा, ‘अगर जमानत राशि 50,000 रुपये से अधिक है, तो अधिकार प्राप्त समिति अपने विवेक का प्रयोग करते हुए एक लाख रुपये से अधिक की उच्च राशि का भुगतान कर सकती है. अगर अधिकार प्राप्त समिति विवेक का प्रयोग करने से इनकार करती है, तो वह ICJS में एकीकरण तक प्राधिकरण के सचिव को ईमेल से अपने निर्णय के बारे में तुरंत (और दो दिनों से अधिक नहीं) सूचित करेगी ताकि वह (सचिव) जमानत राशि कम करने के लिए अदालत या किसी उच्च न्यायालय का रुख कर सकें.’

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