दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के खिलाफ दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना द्वारा उनके खिलाफ दर्ज कराए गए 24 साल पुराने मानहानि के मामले में प्रोबेशन बॉन्ड जमा न करने के लिए गैर-जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) जारी किया। मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने मामले से जुड़े प्रोबेशन बॉन्ड के निष्पादन की कार्यवाही पर दो सप्ताह तक रोक लगाने की पाटकर की याचिका को अस्वीकार कर दिया था और उन्हें ट्रायल कोर्ट जाने के लिए कहा था।
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मेधा पाटकर के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया
राष्ट्रीय राजधानी की एक अदालत ने बुधवार को ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ (एनबीए) की नेता मेधा पाटकर के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया। अदालत ने दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना द्वारा दायर मानहानि के मामले में उन्हें परिवीक्षा बॉण्ड और एक लाख रुपये का जुर्माना जमा करने के लिए कहा था। सक्सेना ने यह मामला 23 साल पहले उस वक्त दायर किया था; जब वह गुजरात में एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) के प्रमुख थे। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने 70-वर्षीय पाटकर को मानहानि के मामले में दोषी करार दिया था। अदालत ने आठ अप्रैल को उन्हें अच्छे आचरण की परिवीक्षा पर रिहा कर दिया, लेकिन उन पर एक लाख रुपये के जुर्माने की पूर्व-शर्त भी लगाई थी।
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दिल्ली की अदालत ने दिया आदेश
यह मामला अदालत में बुधवार को पाटकर की उपस्थिति, परिवीक्षा बॉण्ड प्रस्तुत करने और जुर्माना राशि जमा करने के लिए सूचीबद्ध किया गया था। सक्सेना के वकील गजिंदर कुमार ने कहा कि पाटकर न तो उपस्थित हुईं और न ही उन्होंने अदालत के निर्देशों का पालन किया। उन्होंने कहा, ‘‘आज के मामले में, दिल्ली पुलिस आयुक्त के माध्यम से पाटकर के खिलाफ एनबीडब्ल्यू (गैर जमानती वारंट) जारी किया गया है, और अदालत ने पाया है कि दोषी द्वारा स्थगन का अनुरोध करने वाली अर्जी शरारतपूर्ण और ओछी है।’’ वकील ने कहा, ‘‘यदि दोषी सुनवाई की अगली तारीख (तीन मई) तक आदेश का पालन नहीं करतीं, तो अदालत आठ अप्रैल को सुनाई गई सजा में बदलाव पर विचार करेगी।’’
विस्तृत आदेश की प्रतीक्षा है। सक्सेना ने नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष के रूप में पाटकर के खिलाफ 24 नवंबर 2000 को जारी उनकी मानहानिकारक प्रेस विज्ञप्ति के लिए मामला दर्ज कराया था। पिछले साल 24 मई को मजिस्ट्रेट अदालत ने कहा था कि पाटकर ने अपने बयान में सक्सेना को ‘कायर’ कहा था तथा हवाला लेन-देन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाया था, जो न केवल मानहानिकारक थे, बल्कि उनके बारे में नकारात्मक धारणा को भड़काने के लिए गढ़े गए थे।
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