सिंधु जल संधि को स्थगित करने के बाद अब भारत ने जम्मू-कश्मीर से अतिरिक्त जल प्रवाह को पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की ओर मोड़ने के लिए 113 किलोमीटर लंबी नहर के निर्माण की योजना पर काम करने के लिए अध्ययन शुरू किया है। बताया जा रहा है कि चेनाब को रावी-ब्यास-सतलुज से जोड़ने वाली यह नहर न केवल पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास और सतलुज) के पूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करेगी, बल्कि भारत को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम और चेनाब) में अपनी आवंटित हिस्सेदारी का पूरा उपयोग करने में भी मदद करेगी। हम आपको बता दें कि अभी पिछले सप्ताह ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि सिंधु का जल “तीन वर्षों के भीतर” नहरों के माध्यम से राजस्थान के श्रीगंगानगर तक ले जाया जाएगा और इससे देश के बड़े हिस्से को सिंचाई सुविधाएं मिलेंगी, जबकि पाकिस्तान हर बूंद के लिए तरसेगा।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस योजना से अवगत सूत्रों ने बताया है कि चेनाब-रावी-ब्यास-सतलुज लिंक की योजना इस तरह से बनाई जा रही है कि यह जम्मू, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के 13 स्थानों पर मौजूदा नहर ढांचों से जुड़ सके, जिससे इंदिरा गांधी नहर (सतलुज-ब्यास) तक जल पहुंच सके। हम आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर से पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की ओर अतिरिक्त जल प्रवाह को मोड़ने से क्षेत्रीय जल उपलब्धता में संतुलन बनाया जा सकेगा। बताया जा रहा है कि नई और मौजूदा नहर संरचनाओं को जम्मू-कश्मीर तथा पंजाब के विभिन्न स्थानों पर सुरंगों के माध्यम से जोड़ा जा सकता है। सूत्रों के अनुसार, 113 किलोमीटर लंबी इस नहर का निर्माण खंड-वार किया जाएगा, जिसमें 13 स्थानों को प्राथमिकता दी जाएगी, ताकि इन्हें मौजूदा नहरों से जोड़ा जा सके।
रिपोर्टों के मुताबिक एक अधिकारी ने कहा, “चेनाब से जल लेने वाली मौजूदा रणबीर नहर की लंबाई को 60 किलोमीटर से बढ़ाकर 120 किलोमीटर करने का प्रस्ताव भी है। साथ ही, प्रताप नहर की पूर्ण क्षमता का उपयोग करने के प्रयास भी संभाव्यता रिपोर्ट के आधार पर किए जाएंगे।” इसके साथ ही केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर के कठुआ में वर्षों से लंबित बहुउद्देश्यीय उज (हाइड्रोपावर, सिंचाई और पेयजल) परियोजना को भी पुनर्जीवित करने जा रही है। इसके अलावा, पकल डुल (1,000 मेगावाट), रतले (850 मेगावाट), किरू (624 मेगावाट) और क्वार (540 मेगावाट) जैसी निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाओं को तेज़ी से पूरा करना भी सिंधु नदी के जल के उपयोग के लिए मध्यम और दीर्घकालिक उपायों में शामिल हैं। हम आपको बता दें कि अप्रैल में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के मद्देनज़र भारत ने 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया था और उसके बाद जल संग्रहण और नियंत्रण की दिशा में बड़े कदम उठाये जा रहे हैं।
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