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assam bjps ai video warns muslims sparks uproar in state politics

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असम की राजनीति में हाल ही में एक एआई-जनित वीडियो को लेकर गहरी बहस छिड़ गई है। दरअसल, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की असम इकाई ने अपने आधिकारिक एक्स (X) हैंडल से इसे साझा किया, जिसके बाद विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। वीडियो में दिखाया गया है कि यदि भाजपा सत्ता में न रहे तो असम का भविष्य किस तरह बदल सकता है। एआई वीडियो में मुस्लिम आबादी का वर्चस्व, सार्वजनिक स्थलों पर कथित अतिक्रमण और विपक्षी नेताओं को पाकिस्तान से जोड़ने जैसी तस्वीरें इस वीडियो में उकेरी गई हैं।

विपक्षी दलों का आरोप है कि यह सामग्री धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश है और इससे समाज में नफ़रत का माहौल पनप सकता है। इस संदर्भ में कांग्रेस के नेताओं ने चुनाव आयोग से हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा कि भाजपा ज़हर फैला रही है। वहीं, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस वीडियो को “निंदनीय और घृणित” बताते हुए भाजपा की विचारधारा पर सीधा हमला बोला है।

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लेकिन सवाल यह है कि आखिर भाजपा ने ऐसा कदम क्यों उठाया? इसका जवाब असम की जटिल जनसांख्यिकीय हकीकत में छिपा है। दशकों से असम में अवैध घुसपैठ और तेज़ी से बदलते जनसंख्या संतुलन की चिंता जताई जाती रही है। आँकड़े बताते हैं कि सीमावर्ती ज़िलों में मुस्लिम आबादी का अनुपात लगातार बढ़ा है। इस बदलाव को स्थानीय अस्मिता और संस्कृति के लिए चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। ऐसे में भाजपा का कहना है कि वह असम की पहचान, भूमि और संसाधनों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

निश्चित ही इस बहस में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। भाजपा के लिए यह तर्क देना आसान है कि वह केवल असम के स्वाभाविक स्वरूप और अस्मिता की रक्षा की बात कर रही है, लेकिन इसे प्रस्तुत करने का तरीका विवादास्पद बन गया। विपक्ष इसे नफ़रत फैलाने वाला प्रचार मान रहा है, जबकि भाजपा अपने समर्थकों के बीच इसे “हकीकत की चेतावनी” बताती है।

वैसे, चुनावी मौसम में ध्रुवीकरण की राजनीति भारत में नई बात नहीं है। लगभग सभी दल अपने-अपने वोटबैंक को साधने के लिए इस तरह की रणनीतियाँ अपनाते हैं। कांग्रेस पर भी अतीत में तुष्टिकरण की राजनीति के आरोप लगते रहे हैं। इसी तर्ज पर भाजपा ने इस वीडियो के ज़रिये यह संदेश देने की कोशिश की है कि उसके बिना असम असुरक्षित हो जाएगा और राज्य की सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ सकती है।

लेकिन राजनीति के साथ-साथ सामाजिक ज़िम्मेदारी भी उतनी ही अहम है। यह आवश्यक है कि कोई भी राजनीतिक दल समाज में स्थायी विभाजन न पैदा करे। असम जैसे बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक राज्य में आपसी सौहार्द्र बनाए रखना सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। जो भी पार्टी सत्ता में आए, उससे यह अपेक्षा रहेगी कि वह विकास, रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करे, न कि केवल धार्मिक पहचान के आधार पर जनता की भावनाएँ भड़काए।

फिर भी, यह सत्य है कि चुनावों से ठीक पहले इस तरह के विमर्श अधिक तेज़ हो जाते हैं। असम का भूगोल, सीमावर्ती स्थिति और ऐतिहासिक अनुभव इसे और भी संवेदनशील बना देता है। भाजपा ने जिस तरह से एआई तकनीक का उपयोग कर एक भविष्य की कल्पना पेश की, वह यह दर्शाता है कि तकनीक अब चुनावी अभियानों का अहम हिस्सा बन चुकी है। लेकिन साथ ही, यह भी सवाल उठता है कि क्या लोकतंत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल समाज को गुमराह करने या भय पैदा करने के लिए किया जाना चाहिए?

देखा जाये तो इस पूरे घटनाक्रम से एक बात साफ़ है— असम का जनसांख्यिकीय संतुलन एक वास्तविक चिंता का विषय है और भाजपा जैसी पार्टी इससे आँखें नहीं मूँद सकती थी। लेकिन इस चिंता को व्यक्त करने का तरीका कैसा हो, यही लोकतांत्रिक राजनीति की असली कसौटी है। सौहार्द्र और सह-अस्तित्व को बनाए रखते हुए ही किसी भी मुद्दे को उठाया जाना चाहिए।

बहरहाल, यह हम सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी है कि हम राजनीति की दिशा तय करें। क्या हम अपने मत से नफ़रत और डर को बढ़ावा देंगे, या फिर विकास और एकता की राह को मज़बूत करेंगे? यही सवाल असम की जनता और पूरे देश के सामने आज खड़ा है।


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