हम आपको बता दें कि हालिया फैसले में असम सरकार ने राज्य की दो-बच्चे की नीति में विशिष्ट आदिवासी और कमजोर समुदायों के लिए छूट देने का निर्णय लिया है। इसमें ट्राइबल ग्रुप्स, चाय बागान श्रमिकों, मोरन और मोट्टॉक समुदाय शामिल हैं। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय सामाजिक विज्ञानियों से व्यापक परामर्श के बाद लिया गया है, ताकि इन छोटे समुदायों के विलुप्त होने या अल्पसंख्यक बनने का खतरा कम किया जा सके। 2017 में लागू की गई दो-बच्चे की नीति अब इन समुदायों पर लागू नहीं होगी, जिससे वह सरकारी नौकरियों या पंचायत चुनावों में भाग लेने से वंचित नहीं होंगे।
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देखा जाये तो यह कदम सामाजिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। दरअसल असम जैसे बहुजातीय राज्य में छोटे और कमजोर समुदायों का संरक्षण सांस्कृतिक और भाषाई विविधता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। यदि इन समुदायों की जनसंख्या नियंत्रित रह जाती तो आने वाले दशकों में उनकी पहचान खतरे में पड़ सकती थी। राजनीतिक दृष्टि से यह निर्णय सरकार को आदिवासी और श्रमिक वर्ग के बीच मजबूती से खड़ा करता है और आगामी चुनावों में समर्थन को सुदृढ़ कर सकता है।
दूसरा फैसला भूमि अधिकारों और आर्थिक सशक्तिकरण से संबंधित है। असम सरकार ने मिशन बासुंधरा 2.0 के तहत 224 भूमि पट्टों को मंजूरी दी है, जिससे भूमिहीन आदिवासी परिवारों को स्थायी संपत्ति मिल सके। यह कदम लंबे समय से चली आ रही भूमि विवादों को हल करने और मूल निवासी समुदायों के बीच भूमि संसाधनों के न्यायसंगत वितरण को सुनिश्चित करने का प्रयास है। इसके साथ ही, असम पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड के मेथेनॉल और फॉर्मेलिन परियोजना की लागत बढ़ाने और विस्तार की मंजूरी ने औद्योगिक विकास और रोजगार सृजन के अवसरों को भी बढ़ाया है।
शिक्षा क्षेत्र में भी सरकार ने संवेदनशील पहल की है। असम एलीमेंट्री और सेकेंडरी स्कूल्स टीचर्स (पदस्थापन और स्थानांतरण का विनियमन) बिल, 2025 में संशोधन कर लगभग 12,000 संविदात्मक शिक्षकों को नियमितीकरण के लिए आवेदन करने का अधिकार दिया गया है। यह कदम रोजगार सुरक्षा और शिक्षा क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करेगा।
तीसरा और अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र संवैधानिक सुधार और सामाजिक मुद्दों से जुड़ा है। सरकार ने मोरन और मातक स्वायत्त परिषदों के अधिकारों को बढ़ाने वाले अध्यादेशों को मंजूरी दी है। इसके अलावा, आगामी विधानसभा सत्र में “लव जिहाद”, बहुविवाह, सातराओं (वैष्णव मठों) के संरक्षण और चाय जनजातियों के भूमि अधिकारों से संबंधित विधेयक प्रस्तुत करने की योजना है। ये कदम स्पष्ट रूप से सामाजिक-धार्मिक मुद्दों पर संवैधानिक नियंत्रण और समुदाय आधारित अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में हैं।
देखा जाये तो सामाजिक दृष्टि से ये नीतियां आदिवासी, अल्पसंख्यक और कमजोर समुदायों को न्यायसंगत अवसर प्रदान करती हैं और उनकी सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रखती हैं। राजनीतिक दृष्टि से यह सरकार के लिए मतदाताओं के आधार को मजबूत करने का साधन भी है। हालाँकि, संवेदनशील मुद्दों जैसे “लव जिहाद” और बहुविवाह पर विधेयक, राज्य में राजनीतिक और धार्मिक बहस को तेज कर सकते हैं, इसलिए इनके कार्यान्वयन में संतुलन और संवेदनशीलता बनाए रखना आवश्यक होगा।
बहरहाल, असम सरकार की नीतियां एक तरफ कमजोर और अल्पसंख्यक समुदायों के संरक्षण, शिक्षा और रोजगार के सशक्तिकरण की दिशा में हैं, वहीं दूसरी तरफ यह राज्य की राजनीतिक और सामाजिक दिशा को भी परिभाषित करती हैं। ये कदम असम की बहुलता, आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन बनाने का प्रयास हैं। आगामी विधानसभा सत्र में इन नीतियों के विधायी रूप लेने के बाद असम के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव आना तय है।
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