बिहार विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान हो गया है. NDA और महागठबंधन दोनों ने टिकट बंटवारे में अपने-अपने उम्मीदवारों के जातीय समीकरण का खास ख्याल रखा है. राजद ने अपने आधार वोट बैंक को साधने के लिए मुस्लिम-यादव तबके से ज्यादा उम्मीदवारों को चुना, जबकि जदयू ने पिछड़ा और अति पिछड़ा वाले समीकरण को साधा. बीजेपी ने भी उम्मीदवारों के चयन में सामाजिक समीकरण का दांव खेला है.
तो आइए ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि बिहार की आबादी का जाति-वार ब्रेकडाउन क्या है, यह चुनावी रणनीति को कैसे प्रभावित करेगा और इससे पार्टियों को कितना फायदा मिलेगा…
सवाल 1- जातीय और सामाजिक समीकरण का बेसिक मतलब क्या है और बिहार में इसकी जड़ें गहरीं क्यों?
जवाब- जातीय समीकरण का आसान मतलब है कि पार्टियां आबादी के जातिगत ब्रेकडाउन को देखकर वोट बैंक बनाती हैं. कौन सी जाति कितनी बड़ी है, कहां रहती है और उसे कैसे लुभाया जाए. सामाजिक समीकरण इसमें धर्म, आर्थिक स्थिति और क्षेत्रीय फैक्टर जोड़ता है.
बिहार में यह बड़ी बात है क्योंकि यहां 214 जातियां हैं और कोई एक जाति बहुमत में नहीं है. बिहार की कुल आबादी 13.7 करोड़ है, जिसमें EBC- 4.70 करोड़(36.01%) सबसे बड़ा ग्रुप है. फिर OBC- 3.54 करोड़(27.13%), SC- 2.57 करोड़(19.65%), सवर्ण- 2.03 करोड़(15.52%), मुस्लिम- 2.31 करोड़(17.7%) और ST- 22 लाख(1.68%) हैं.
- बिहार में जातीय और सामाजिक समीकरण 1990 के मंडल कमीशन (OBC आरक्षण 27%) से शुरू हुआ, जब लालू प्रसाद यादव ने MY (मुस्लिम-यादव, 31% आबादी) फॉर्मूला बनाया, जिसने ऊपरी जातियों का वर्चस्व तोड़ा.
- 2005 से नीतीश कुमार ने Luv-Kush (कुर्मी-कुशवाहा, 7-8%) + EBC + महादलित (SC का हिस्सा) जोड़कर ‘विकास’ के साथ जाति को बैलेंस किया.
- 2023 सर्वे ने EBC को 36% दिखाया, जो पार्टियों को मजबूर कर रहा है कि वे सिर्फ कोर वोट पर न रहें, बल्कि सेंध लगाएं.
- उदाहरण से समझें- यादव (14.27%, 1.87 करोड़) RJD का कोर वोट बैंक है. कुशवाहा (4.21%, 0.55 करोड़) NDA का और ब्राह्मण (3.66%, 0.48 करोड़) BJP के कोर वोटर्स हैं. इन्हें साधे बिना बहुमत यानी 122 सीटें लाना नामुमकिन है.
सवाल 2- बिहार की आबादी का जाति-वार डिटेल्ड ब्रेकडाउन क्या है और यह चुनावी रणनीति को कैसे प्रभावित करता है?
जवाब- 2023 की जातिगत जनगणना के मुताबिक, बिहार की कुल आबादी 13.07 करोड़ में 214 जातियां हैं. इनमें-
- EBC (अति पिछड़ा वर्ग): 4.70 करोड़ लोगों यह जाति वर्ग 36.01% आबादी को कवर करता है. इनमें धनुक (2.41%), निषाद (1.96%), तेली (2.81%), केवट (1.21%) और बिंड (1.25%) शामिल हैं. ये ग्रामीण बहुल लोग हैं, जिनकी आमदनी 6 हजार रुपए महीना से कम है. नीतीश कुमार ने इन्हें 18% आरक्षण दिया, जिससे जदयू को 2005-2010 चुनाव में फायदा हुआ था.
- OBC (पिछड़ा वर्ग): 3.54 करोड़ लोगों का यह वर्ग 27.13% आबादी कवर करता है. इनमें यादव (14.27%), कुशवाहा/कोइरी (4.21%) और कुर्मी (2.87%) जैसे जाति के लोग शामिल हैं. ये MY का हिस्सा, लेकिन NDA ने कुशवाहा को तोड़कर 32% OBC वोट काटे हैं.
- SC (दलित वर्ग): 2.57 करोड़ लोगों के इस वर्ग का कुल आबादी में 19.65% हिस्सा है. इनमें पासवान (5.31%), रविदास (1.59%), मुशहर (3.08%) और मनझी (1.19%) जैसे जाति वर्ग हैं. इसमें महादलित (21 सब-कास्ट) नीतीश का वोट बैंक हैं, लेकिन चिराग पासवान ने पासवान जाति को BJP की ओर खींचा है.
- सवर्ण (ऊपरी): 2.03 करोड़ लोग कुल आबादी का 15.52% हिस्सा हैं. इनमें ब्राह्मण (3.66%), राजपूत (3.45%), भूमिहार (2.86%) और कायस्थ (0.60%) जैसे जातीय लोग शामिल हैं. यह BJP का कोर वोट बैंक है, जो शहरी प्रभावी है. लेकिन संख्या कम होने से गठबंधन जरूरी हो जाता है.
- मुस्लिम: राज्य में 2.31 करोड़ की आबादी है, जो 17.7% कवर करती है. इनमें शेख और पठान जैसे जातीय लोग शामिल हैं. इससे राजद को 76% वोट मिलता है.
- ST: राज्य में 1.68% को कवर करने वाली आबादी करीब 22 लाख है, जिनमें संथाल और ओरांव जैसी जातियां शामिल हैं. इनके लिए 2 सीटें आरक्षित हैं.
बिहार में यह ब्रेकडाउन चुनाव प्रभावित करता है क्योंकि पार्टियां इसी के आधार पर टिकट बांटती हैं. जैसे- EBC की 36% आबादी पर जदयू ने 2025 में 32% टिकट दिए ताकि ग्रामीण वोट पक्का हो सके. सर्वे ने OBC+EBC को 63% दिखाया, जो ‘सोशल जस्टिस’ की मांग बढ़ा रहा.
सवाल 3- महागठबंधन ने टिकट कैसे बांटे और इससे क्या फायदा-क्या नुकसान होगा?
जवाब- महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, वीआईपी और लेफ्ट (CPI-ML जैसे दल) शामिल हैं. इनका मकसद बिहार की 63% पिछड़ी (OBC+EBC), 19.65% दलित और 17.7% मुस्लिम आबादी को अपने पाले में लाना है…
राजद (143 सीटें)
- राजद ने 243 में से 143 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. इनका सबसे बड़ा हथियार MY फॉर्मूला है. इन दो समूहों को मिलाकर 31% आबादी बनती है, जो बिहार में बहुत बड़ा वोट बैंक है. राजद ने 51 यादव और 19 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए. यानी उनके टिकट का आधा हिस्सा इन्हीं दो समूहों को गया. इसका मतलब है कि मगध और सीमांचल जैसे इलाकों में राजद को भारी वोट मिल सकते है, जहां ये समूह मजबूत हैं. तेजस्वी यादव की तरफ से A टू Z के दावे के बावजूद राजद ने MY समीकरण का सबसे ज्यादा ख्याल रखा है.
- इसके अलावा राजद ने 11 कुशवाहा उम्मीदवारों को भी टिकट दिए, जो आमतौर पर NDA के साथ हैं. ये NDA के OBC वोट को तोड़ने की चाल है. 14 टिकट सवर्णों यानी ब्राह्मण और राजपूतों को और बाकी EBC (धनुक, निषाद) व दलितों (पासवान, रविदास) को गए. राजद ने महिलाओं को भी 10-15% टिकट दिए, ताकि 50% महिला वोटरों को लुभाया जाए.
कांग्रेस (61 सीटें)
- कांग्रेस का फोकस EBC की 36% आबादी पर है, जिनमें धनुक, तेली और दलितों में रविदास शामिल है. रविदास जाति के राजेश कुमार को बिहार कांग्रेस का प्रमुख बनाकर दलित वोटरों को लुभाया है. अगस्त 2025 की कन्हैया कुमार की पदयात्रा ने युवा और माइग्रेंट वोटरों को टारगेट किया. कांग्रेस ने सवर्णों को भी कुछ टिकट दिए ताकि शहरी इलाकों में पकड़ बनी रहे.
VIP और लेफ्ट
- मुकेश साहनी की VIP ने 4-5 सीटों पर निषाद उम्मीदवार दिए, जो कोसी-सोन क्षेत्र में मजबूत हैं. लेफ्ट (CPI-ML आदि) ने 18 सीटों पर EBC (धनुक, तेली) को टिकट दिए. ये छोटे दल महागठबंधन को ग्रामीण EBC और दलित वोटों तक पहुंचाते हैं.
महागठबंधन की रणनीति: महागठबंधन ने अपने 70% टिकट OBC, EBC, SC और मुस्लिम को दिए ताकि बिहार की 80% से ज्यादा आबादी कवर हो. MY को मजबूत रखकर 2020 की तरह 23% वोट शेयर पक्का करने की कोशिश की है. कुशवाहा टिकट NDA के वोट छीनने के लिए और तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाकर युवा वोटरों को लुभाने की योजना है.
फायदा: एक्सपर्ट्स के मुताबिक, MY समीकरण से 76% मुस्लिम और 80% यादव वोट पक्के हैं, जो 75-85 सीटें दिला सकता है. अगर कुशवाहा टिकट से NDA के 5-10% OBC वोट टूटे, तो मगध जैसे इलाकों में 10-15 अतिरिक्त सीटें मिल सकती हैं. तेजस्वी की युवा अपील से 10% फ्लोटिंग वोट का फायदा हो सकता है.
नुकसान: EBC की 36% आबादी पर कम टिकट से NDA की पकड़ मजबूत रह सकती है, जैसा 2020 में हुआ था जब महागठबंधन का OBC कंसोलिडेशन फेल हुआ था. 6 सीटों पर राजद-कांग्रेस की आपसी फ्रेंडली फाइट से वोट बंट सकते हैं. प्रशांत किशोर की जन सुराज सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और जाति से हटकर वोट मांग रही है. इससे 20% फ्लोटिंग वोटर्स छिन सकते हैं.
सवाल 4- NDA ने टिकट कैसे बांटे और इससे क्या फायदा-क्या नुकसान होगा?
जवाब- NDA में जदयू, बीजेपी, LJP (चिराग पासवान), HAM (जीतन राम मांझी) और RLM (उपेंद्र कुशवाहा) शामिल हैं. इन्होंने सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और इनका लक्ष्य EBC (36%), OBC (27%) और दलित (19.65%) को साधते हुए सवर्ण (15.52%) को मजबूत रखना है…
जदयू (101 सीटें)
- नीतीश कुमार की जदयू ने 101 सीटों पर उम्मीदवार उतारे. इनका फोकस OBC और EBC हैं, जो 63% आबादी है. 37 टिकट OBC को गए, जिसमें 13 कुशवाहा, 12 कुर्मी, 22 EBC को (8 धनुक सहित) और 8 यादव को ताकि RJD के MY में सेंध लग सके. 22 सवर्ण (9 भूमिहार, 10 राजपूत, 1 ब्राह्मण, 1 कायस्थ), 4 मुस्लिम और 10 दलित (5 मुशहर, 5 रविदास) को टिकट मिले.
- 13 महिलाएं को भी टिकट दिए ताकि महिला वोटर्स को लुभा सके. नीतीश EBC को 18% आरक्षण और विकास की इमेज से पक्का करना चाहते हैं और कुशवाहा-कुर्मी से ग्रामीण वोट साधना चाहते हैं.
बीजेपी (101 सीटें)
- बीजेपी का कोर वोटर सवर्ण (15.52%) है, इसलिए 49 टिकट सवर्णों को दिए. इनमें 21 राजपूत, 16 भूमिहार, 11 ब्राह्मण और 1 कायस्थ शामिल हैं. यानी, आधे टिकट सवर्णों को, जो सिर्फ 15% आबादी हैं, क्योंकि ये 90% BJP को वोट देते हैं. 24 OBC टिकट (6 यादव, 5 कुशवाहा, 2 कुर्मी, 4 बनिया), 16 EBC (5 तेली, 1 निषाद, 1 धनुक), 11 SC (7 पासवान, 3 रविदास, 1 मुशहर) और 1 ST को गए. RSS के ग्राउंड वर्क ने सवर्णों को एकजुट किया.
LJP, HAM, RLM
- LJP (चिराग पासवान) ने 29 सीटों पर पासवान (5.31%) उम्मीदवार दिए, जो दलित वोट का बड़ा हिस्सा हैं. HAM (जीतन राम मांझी) ने 7-8 सीटों पर मुशहर और मनझी को टिकट दिए. RLM (उपेंद्र कुशवाहा) ने 3-4 सीटों पर कुशवाहा को चुना. ये छोटे दल NDA को दलित और OBC वोट दिलाते हैं.
NDA की रणनीति: एक्सपर्ट्स के मुताबिक, NDA ने 60% टिकट OBC-EBC-SC को दिए ताकि 63% पिछड़ी और 19.65% दलित आबादी कवर हो. BJP का सवर्ण बेस और जदयू का EBC फोकस 2020 की तरह 32% EBC और 40% SC वोट दिला सकता है. नीतीश को CM चेहरा बनाकर गठबंधन की स्थिरता दिखाई. यादव टिकट से RJD का MY तोड़ने की कोशिश की है.
फायदा: एक्सपर्ट्स के मुताबिक, EBC से 32% वोट, सवर्ण से 90% और दलित से 40% NDA को 136 सीटें दिला सकता है.नीतीश की EBC इमेज और चिराग का पासवान प्रभाव ग्रामीण सीटें पक्की करेगा.
नुकसान: एक्सपर्ट्स के मुताबिक, सवर्णों को आधे टिकट देने से OBC-EBC में नाराजगी का जोखिम बढ़ा और OBC सवाल उठा रहे हैं. नीतीश की उम्र (74) और स्वास्थ्य से EBC वोट शिफ्ट हो सकता. जन सुराज 20-30 सीटें छीन सकती है, खासकर अगर युवा (58%) और बेरोजगारी (34% परिवार ₹6,000/माह से कम) मुद्दे हावी हुए.
सवाल 5- क्या टिकट बंटवारे से चुनावी नतीजों पर असर पड़ेगा?
जवाब- पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, जातीय और सामाजिक समीकरण के तहत टिकट बांटने से चुनावी नतीजों पर काफी हद तक असर पड़ेगा. ये बंटवारा वोट कंसॉलिडेशन और सेंधमारी का खेल है. ट्रेंड्स की मानें तो NDA को फायदा ज्यादा लग रहा है, क्योंकि उनका टिकट वितरण EBC (36%) और सवर्ण (15.52%) को मजबूत करता है, जबकि महागठबंधन का MY (मुस्लिम-यादव, 31%) फोकस सीमित है.
एक्सपर्ट्स कहते हैं कि टिकट से जाति-वार वोट शिफ्ट होता है. अगर NDA EBC (60% वोट 2020 में) पकड़ रखे, तो बहुमत (122 सीटें) पक्का हो सकता है. वहीं, महागठबंधन अगर कुशवाहा (4.21%) से NDA के OBC वोट काट ले, तो 10-15 सीटें प्लस हो जाएंगी. लेकिन जन सुराज का कास्ट-न्यूट्रल अप्रोच 20% फ्लोटिंग वोट काट सकता है, जो दोनों को नुकसान देगा.



