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दुनिया इस समय स्वच्छ ऊर्जा के युग में प्रवेश कर चुकी है. इलेक्ट्रिक वाहनों, सोलर सिस्टम और बैटरी स्टोरेज की बढ़ती मांग के बीच अब ऊर्जा बाजार का नया सितारा उभर कर सामने आया है ग्रेफाइट (Graphite). जहां कुछ साल पहले लिथियम को व्हाइट गोल्ड कहा जाता था, वहीं अब ग्रेफाइट को ब्लैक डायमंड का दर्जा दिया जा रहा है.
आज ग्रेफाइट उत्पादन में चीन का दबदबा है. करीब 81 मीट्रिक टन के भंडार के साथ वह दुनिया की बैटरी सप्लाई चेन पर लगभग नियंत्रण रखता है. CATL और BYD जैसी चीनी कंपनियां इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरियों में ग्रेफाइट की मांग को दिशा दे रही हैं, लेकिन अब अमेरिका, जापान और भारत जैसे देश इस एकाधिकार को तोड़ने के लिए आगे आ रहे हैं. भारत की योजना स्पष्ट है. घरेलू उत्पादन बढ़ाना और मेक इन इंडिया के तहत बैटरी निर्माण में आत्मनिर्भर बनना.
ग्रेफाइट हर बैटरी की जान
ग्रेफाइट किसी भी लिथियम-आयन बैटरी का सबसे अहम हिस्सा है. यह बैटरी के एनोड में इस्तेमाल होता है, जो चार्ज और डिस्चार्ज के दौरान ऊर्जा को नियंत्रित रखता है. बिना ग्रेफाइट के कोई भी बैटरी टिकाऊ नहीं रह सकती. इसी वजह से इसे अब एनर्जी टेक्नोलॉजी की रीढ़ कहा जाने लगा है. प्राकृतिक ग्रेफाइट की सीमित उपलब्धता के कारण कई देश कृत्रिम ग्रेफाइट (Synthetic Graphite) के उत्पादन पर जोर दे रहे हैं. हालांकि इस प्रक्रिया में अधिक ऊर्जा और जीवाश्म ईंधन की जरूरत होती है, जिससे यह महंगी और पर्यावरण के लिए हानिकारक साबित हो रही है.
भारत की नई दौड़ काला सोना की खोज
भारत फिलहाल इस मामले में विश्व में सातवें स्थान पर है, लेकिन यहां के भंडार इसे जल्द ही ग्रेफाइट शक्ति बना सकते हैं. अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी सियांग, लोअर सुबानसिरी और पापुमपारे जिलों में बड़े भंडार पाए गए हैं. इसके अलावा कश्मीर और मध्य प्रदेश में भी नये माइनिंग एरिया खोजे जा रहे हैं. भारत सरकार ने ग्रेफाइट को क्रिटिकल मिनरल घोषित किया है. खनन कंपनियों को घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं. यह कदम चीन पर निर्भरता घटाने और इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग को गति देने के लिहाज से अहम है.
ग्रीन ग्रेफाइट आने वाले दशक की जरूरत
वैज्ञानिक अब ऐसे समाधान खोज रहे हैं, जिनसे ग्रेफाइट का उत्पादन पर्यावरण के अनुकूल बनाया जा सके. इसके लिए दो बड़े रास्ते सामने हैं. पहला नए स्रोतों से कार्बन लेकर ग्रीन ग्रेफाइट तैयार करना और दूसरा पुरानी बैटरियों से ग्रेफाइट को रीसायकल करके फिर से इस्तेमाल में लाना है. अगर भारत इन दोनों मोर्चों पर निवेश करता है तो वह न केवल चीन का विकल्प बन सकता है, बल्कि आने वाले वर्षों में एशिया का बैटरी पावर हब भी बन सकता है.
दुनिया के सबसे बड़े ग्रेफाइट भंडार वाले देश
चीन फिलहाल 81 मीट्रिक टन ग्रेफाइट भंडार के साथ शीर्ष पर है, जबकि ब्राजील 74 मीट्रिक टन के साथ दूसरे स्थान पर है. मोज़ाम्बिक, मेडागास्कर, तंजानिया और रूस इसके बाद आते हैं. भारत के पास लगभग 8.6 मीट्रिक टन ग्रेफाइट मौजूद है, जो दक्षिण एशिया में सबसे अधिक है.
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