-‘प्रणामी’ सतीश
गली वाले ‘मुनिया’ बोलते हैं, जबकि बेटा उसे ‘शेरू’ कहता है। बेटा श्वान के लिंग भेद को ज्यादा नहीं जानता। कई बार बताया भी कि मादा श्वान को शेरू, चीकू, टफी, कालू नाम नहीं दिया जाता। ऐसे नाम केवल नर श्वान को ही दिए जाते हैं। लेकिन बेटा नहीं माना, मैं तो इसे शेरू ही कहूंगा। खैर, बालबुद्धि है।
हमारी गली में मुनिया, उसकी मां और एक अन्य नर श्वान का एकछत्र राज है। क्या मजाल कि दूसरी गली का कोई श्वान इस गली में आने की हिमाकत करे। तीनों श्वान मिलकर ऐसे घुसपैठिए पर तुरंत हमला बोल देते हैं कि बेचारे को दुम दबाकर भागना पड़ता है। अधिकतर ‘मुनिया एंड कंपनी’ का ठिकाना दिन-रात हमारे घर के सामने ही रहता है। गली में बच्चे कैसे भी खेले, ‘मुनिया एंड कंपनी’ को धमकाए या पूंछ खींचे, न तो कभी गुर्राते हैं न भौंकते हैं। बल्कि बालकों के साथ खेलने लग जाते हैं। हां, अजनबी और रहस्यमयी व्यक्तियों पर अवश्य भौंकते हैं। खासतौर पर रात के वक्त।
गली में सुबह-सवेरे घरों में दूध देने दूधिया का आना-जाना लगा रहता है। बरतन में दूध डालते वक्त दूध की दो-चार बूंदें नीचे जमीन पर गिर जाती हैं। जबसे मुनिया अथवा शेरू गर्भवती हुई है, वह उन दो-चार बूंदों को चाटने के लालच में पूंछ हिलाती हुई चली आती है।
वैसे, गली में इन तीनों श्वान को खाने की कभी कमी नहीं रहती, बल्कि खाना बचा पड़ा रहता है, जिसे गाहे-ब-गाहे गली में जबरन घुसने वाले शूकर चट कर जाते हैं। यूं तो तीनों श्वान शूकरों को देखते ही दूर तक खदेड़ देते हैं, लेकिन कभी कभार आंख बचाकर आ ही जाते हैं।
खैर, बात मुनिया की हो रही थी। मुनिया पहली बार गर्भवती हुई है, उसकी गर्भावस्था को देखते हुए दूधिया को कह दिया कि रोज एक पाव दूध मुनिया के नाम का निकालकर अलग बरतन में रख दे। बेटे ने मुनिया को दूध पिलाने वाले बरतन का भी इंतजाम कर लिया और प्रतिदिन दूध पिलाने की जिम्मेदारी संभाल ली। रोज सुबह दूधिया की साईकिल की आवाज सुनते ही पूंछ हिलाती हुई मुनिया तुरंत दौड़ आती और दूध पीकर बेटे के पैरों में लोट-पोट हो जाती। उसका ये रोज का क्रम बन गया।
एक दिन मुनिया नहीं आई, उसका दूध भी दूसरी श्वान को पिलाना पड़ा। गली वाले चिंतित, बेटा कुछ अधिक ही। गली के खाली पड़े तमाम प्लॉट छान मारे, लेकिन मुनिया कहीं दिखाई नहीं दी। कहां चली गई? सब हैरान परेशान। ये तो सबको मालूम था कि मुनिया गर्भवती थी, लेकिन कहीं तो उसकी जचगी हुई होगी! पता नहीं चला। तीसरे दिन मुनिया धीरे-धीरे चलती हुई लड़खड़ाते कदमों से दरवाजे पर आई। शरीर से कमजोर लग रही थी। श्रीमती समेत गली की औरतें तुरंत ताड़ गई कि मुनिया मां बन गई। लेकिन किस स्थान पर? अभी ये रहस्य बरकरार था।
खैर, गली की औरतों ने किसी ने गर्म दूध, किसी ने पानी में गुड़ पकाकर दिया। और ध्यान रखा कि मुनिया कहां जाती है? देखा जाए। मुनिया तृप्त होकर अपने नवजात शिशुओं के पास चल दी, पीछे-पीछे बेटा व अन्य औरतजन। तब जाकर मुनिया की जचगी के स्थान के बारे में पता चला।
एक खाली प्लॉट में कंटीली झाड़ी के नीचे गड्ढे में चार बच्चों को जन्म दिया था। जहां घना अंधेरा था। जगह ऐसी कि एक बार की बारिश भी बच्चों तक न पहुंचे। उसकी जचगी के स्थान के बारे में जानकर सबने हैरत जताई।
कमाल की समझ! अजब गुण! भले ही मानव द्वारा दुत्कारे जाते हो लेकिन अपने शिशुओं को बिना किसी सहायता के कहां और कैसे जन्म देना है, कैसे सुरक्षित रह सकते हैं, इसका खूब ज्ञान होता है। ये इनका आनुवंशिकी गुण है अथवा कुछ और? मैं नहीं जानता, जिसने पशुओं के बारे में अध्ययन किया है वही बता सकता है। लेकिन इतना जरूर है कि पशुओं में संवेदनाएं, भावनाएं हम मनुष्यों से कुछ अधिक ही होती हैं। तभी तो ये रोटी के एक टुकड़े की कीमत कई बार तो अपनी जान देकर भी चुका देते हैं। और मानव…? मुझे कुछ कहने की आवश्यकता नहीं, पाठक स्वयं जानते हैं।