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चुनाव आयोग ने अदालत को बताया कि बिहार में, मसौदा मतदाता सूची में शामिल 2.74 करोड़ मतदाताओं में से 99.5 प्रतिशत ने पहले ही अपनी पात्रता के दस्तावेज़ जमा कर दिए हैं। अधूरे दस्तावेज़ वाले शेष मतदाताओं को सात दिनों के भीतर नोटिस जारी किए जा रहे हैं। आयोग ने तर्क दिया कि 1 सितम्बर की समय-सीमा में किसी भी प्रकार का विस्तार एसआईआर प्रक्रिया के सुचारू संचालन को बाधित करेगा तथा आगामी चुनावों से पहले मतदाता सूचियों को अंतिम रूप देने में देरी करेगा। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने आधार पर न्यायालय की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि इसे सत्यापन के लिए सूचीबद्ध दस्तावेजों में से एक के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, लेकिन केवल पहचान के प्रमाण के रूप में। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि न्यायालय वृहद पीठ के फैसले और आधार अधिनियम की धारा 9 से आगे नहीं जा सकता, जो आधार को नागरिकता के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देती।
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याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि चुनाव अधिकारी आधार के आधार पर किए गए दावों को खारिज कर रहे हैं। हालाँकि, अदालत ने दोहराया कि आधार को 11 मान्यता प्राप्त दस्तावेजों में शामिल किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और अन्य याचिकाकर्ताओं ने बड़े पैमाने पर लोगों के नाम हटाए जाने का हवाला देते हुए अदालत से 1 सितंबर की समयसीमा बढ़ाने का आग्रह किया। उन्होंने बताया कि 22 से 27 अगस्त के बीच दावों की संख्या 84,305 से लगभग दोगुनी होकर 1,78,948 हो गई। याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग पर पारदर्शिता बनाए रखने में विफल रहने का भी आरोप लगाया और कहा कि दावा प्रपत्र अपलोड नहीं किए जा रहे थे और नाम जोड़ने की बजाय हटाए जाने को प्राथमिकता दी जा रही थी।
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